बवासीर में, रक्त अतिसार में, सूजन में, लकवा मारने पर, मासिक धर्म में काम शक्ति बढ़ाने में, अतिसार में, दाद खाज खुजली में, कर्ण विकार में, गले के रोग में, हिचकी आने पर, सांस में, नेत्र रोग में, पीलिया रोग में, पेट दर्द में, लीवर संबंधी विकारों में, पथरी में, मूत्र विकार में, इत्यादि रोगों में औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है।
मूली का 20 ग्राम रस निकालकर उसमें 50 ग्राम गाय का घी मिलाकर सेवन करने से कुछ ही सप्ताह में बवासीर नष्ट हो जाता है।
मूली के पत्तों के 10 ग्राम रस में 3 ग्राम अजमोद मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पथरी गल जाती है।
मूली के ताजे पत्तों का रस सेवन करने से मूत्राशय के सूजन में लाभ मिलता है।
मूली को लेकर इसके ऊपर का मोटा छिलका उतारकर इसका रस निकाल कर इसमें 5 ग्राम घी मिलाकर प्रतिदिन सुबह के समय सेवन करने से रक्त अतिसार में लाभ मिलता है
मूली के बीजों का चूर्ण 2 से 3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से मासिक धर्म की रुकावट मिट जाती है और मासिक धर्म साफ होता है।
मूली का 20 ml. तेल दिन में दो से तीन बार सेवन करने से लकवा रोग में लाभ मिलता है।
मूली के पत्तों का रस 50 ग्राम की मात्रा में लेकर इस समय गन्ने का रस 20 ग्राम की मात्रा में मिलाकर सेवन करने से पीलिया रोग में लाभ मिलता है।
बहेड़ा के पत्तों को पीसकर रस निकालकर इसमें मूली के 10 ग्राम बीजों को पीसकर कुष्ठ रोग में लगाने से सभी प्रकार के चर्म रोगों में लाभ मिलता है।